मान्धाता स महीपति: कृतयुगालंकार भूतो गत:
सेतुर्येन महोदधौ विरचित: क्वासौ दशस्यांतक:
अन्ये चापि युधिष्ठिर प्रभृतिभि: याता दिवम् भूपते
नैकेनापि समम् गता वसुमती नूनम् त्वया यास्यति
मेरुतुंग
ये बेहद सुन्दर कविता मैंनें अपनी नवीं कक्षा की संस्कृत पुस्तक मे पढी थी. तब स्कूल मे जब हम बच्चे एक दूसरे से नोट्स मांगते, और अगर कोई बच्चा देने में आना कानी करता, तो हम उसे इस कविता की आख़री पंक्ति चिपका देते. इस कविता की कहानी भी है. राजा भोज जब चार या पांच वर्ष के थे तो उनके पिताजी की मृत्यु हो गई, उनके चाचा मुंज ने उन्हें मरवा देने का आदेश दिया. मरने से पहले उन्होंने अपने क़ातिल को ये चार पंक्तियां लिख कर भेज दी. ये और बात है कि वो मरे ही नहीं. ख़ैर वापस अपनी कविता पर लौटते हैं
मान्धाता एक चक्रवर्ती राजा थी - पूरी धरती पे उनकी हुकूमत थी. महीपति यानी राजा. तो मान्धाता जैसे प्रतापी राजा हुए थे, जो कृतयुग के अलंकार हुए, पर आख़िर वो भी मर गये.
जिसने महासागर पर पुल बनाया था, रावण का वध करने वाला वो शख़्स (राम) अब किधर गया?
और भी बहुत से राजा हुए हैं. युधिष्ठिर से फ़ेहरिस्त शुरु होती है और काफ़ी आगे तक जाती है. ये तमाम राजा भी स्वर्ग तक की यात्रा कर चुके हैं.
अब आख़िरी मिसरे पर ग़ौर करते हैं.
न एकेन अपि समम् गता वसुमती नूनम् त्वया यास्यति
इनमें से किसी के साथ भी ये पृथिवी नहीं गई, मतलब वो सब महान थे मगर इस धरती को साथ नहीं ले जा सके, नूनम् यानी बिला शक़, यक़ीनन. यक़ीनन तुम्हारे साथ (पूज्य चाचाजी) जाएगी.
व्यंग के बाण का बेहतरीन इस्तेमाल. हिन्दी फ़िल्मों मे सम्वाद सुना होगा आपने, ये सारी दौलत क्या अपने साथ लेके जाएगा?
sundar... bahut sundar...
ReplyDeletekhas kar Sanskrit ke sholk se samjhna aur bhi sundar... !
Thank you !
One of my favourite Slokhas!
ReplyDeleteThe truth about impermanence!