कई लोग जान से जायेंगे मिरे क़ातिलों कि तलाश में
मिरे क़त्ल में मिरा हाथ था ये कभी किसी को ख़बर न हो
वो तमाम दुनिया के वास्ते जो मोहब्बतों कि मिसाल था
वही अपने घर में था बेवफ़ा ये कभी किसी को ख़बर न हो
इक बरस ज़िन्दगी का बीत गया
तह जमी एक और काई की
अब तरसते रहो ग़ज़ल के लिये
तुम ने लफ़्ज़ों से बेवफ़ाई की
ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत
घर से निकलो तो ये दुनिया ख़ूबसूरत है बहुत
बशीर बद्र
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