हर चीज़ है बाज़ार में इस हाथ दे उस हाथ ले
इज़्ज़त गई शोहरत मिली रुस्वा हुये चर्चा हुआ
आहिस्ता चलने में अब दम घुटता है
ठहरूँगा तो साँस मेरी रुक जायेगी
हज़ार सफ़हों का दीवान कौन पढ़ता है
बशीर बद्र कोई इंतख़ाब दे जाओ
देने वाले ने दिया सब कुछ अजब अन्दाज़ में
सामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं
बशीर बद्र
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