इसी अहतियात में वो रहा इसी अहतियात में मैं रहा
वो कहाँ कहाँ मिरे साथ है किसी और को ये पता न हो
किसी की राह में दहलीज़ पर दिये न रखो
किवाड़ सूखी हुई लकड़ियों के होते हैं
क़दीम क़स्बों में कैसा सुकून होता है
थके थकाये हमारे बुज़ुर्ग सोते हैं
क़दीम = पुराने
अख़लाक़, वफ़ा, चाहत सब क़ीमती कपड़े हैं
हर रोज़ न ओढ़ा कर इन रेशमी शालों को
अख़लाक़ = नैतिकता
तुझे ख़ुद अपनी मजबूरी का अन्दाज़ा नहीं शायद
न कर अहदे वफ़ा, अहदे वफ़ा से चोट लगती है
कभी हम भी उसके क़रीब थे दिलो जाँ से बढ़ के अज़ीज़ थे
मगर आज ऐसे मिला है वो कभी पहले जैसे मिला न हो
अज़ीम दुश्मनो चाक़ू चलाओ मौक़ा है
हमारे हाथ हमारी कमर के पीछे हैं
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