भीगी हुई आंखों का ये मंज़र न मिलेगा
घर छोड़ कर मत जाओ कहीं घर न मिलेगा
मुल्क तक़सीम हुए दिल तो सलामत हैं अभी
खिड़कियाँ हम ने खुली रखी है दीवारों में
बारिश बारिश कच्ची क़ब्र का घुलना है
जाँ लेवा अहसास अकेले रहने का
मुझ से बिछड़ के ख़ुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो
बशीर बद्र
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