मुंतज़र फूल में ख़ुशबू की तरह हूं कब से
कोई झोंके की तरह आये उडा कर ले जाये
तुम मेरी ज़िन्दगी हो ये सच है
ज़िन्दगी का मगर भरोसा क्या
वसीला है इंसान राज़िक ख़ुदा है
जो दर बन्द होंगे दरीचे खुलेंगे
वसीला = ज़रिया, माध्यम; राज़िक = रोटी देने वाला; दरीचे = खिड़कियाँ
बशीर बद्र
No comments:
Post a Comment