पहले से कुछ साफ़ नज़र आई दुनिया
जब से हमने आंखों पर पट्टी बांधी
उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबाद्तों में शुमार है
कोई फूल लाख क़रीब हो कभी मैं ने उसको छुआ नहीं
ये ख़ुदा की देन अजीब है कि इसी का नाम नसीब है
जिसे तूने चाहा वो मिल गया जिसे मैंने चाहा मिला नहीं
इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं
उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उनका कोई पता नहीं
बशीर बद्र
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