पिला के रात का रस राक्षस बनाती थी
सवेरे लोगों से कहती थी देवता मुझको
अण्डा मछली छूकर जिनको पाप लगे
उनका पूरा हाथ लहू में डूबा है
आहिस्ता, आहिस्ता दिल पर दस्तक दो
धीरे धीरे ये दरवाज़ा खुलता है
मेरे अज़ीज़ मुझे क़त्ल करके फेंक आते
भला हुआ कि मेरे लब मेरी सदा से लड़े
बढिया!!
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