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Friday, July 15, 2011

रात भारी सही कटेगी ज़रूर

रात भारी सही कटेगी ज़रूर
दिन कडा था मगर गुज़र के रहा

raat bhaarii sahii kaTegii zaroor
din kaDaa thaa magar guzar ke rahaa

अहमद नदीम क़ासिमी

फ़ैज़ के 'लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है' की याद आ गई

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