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Wednesday, December 2, 2009

ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे

ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे

इक आग का दरया है और डूब के जाना है

आंसू तो बहुत हैं आंखों में 'जिगर' लेकिन

बिंध जाये तो मोती है, रह जाये तो दाना है

जिगर मुरादाबादी

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