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Wednesday, July 1, 2009

कैसी बहार हम से असीरों को मना है

चाके क़फ़स से बाग़ की दीवार देखना

मीर

मुझको आदत है रूठ जाने की

आप मुझको मना लिया कीजे

जान एलिया

मुख़ालफ़त से मेरी शख़्सियत सँवरती है

मैं दुश्मनों का बड़ा एहतेराम करता हूँ

बशीर बद्र

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