My favourite poetry
Urdu, Hindi, Sanskrit, English, Greek and Latin - all the poetry that has touched me.
© V. Ravi Kumar. All rights reserved.
Wednesday, April 22, 2009
ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है
ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है
समन्दरों ही के लहजे में बात करता है
शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ ना बिगाड़ो तो कौन ड़रता है
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