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Wednesday, April 22, 2009

ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है

ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है
समन्दरों ही के लहजे में बात करता है

शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ ना बिगाड़ो तो कौन ड़रता है

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