© V. Ravi Kumar. All rights reserved.

Page copy protected against web site content infringement by Copyscape

Wednesday, January 14, 2009

कोई इस ज़ख़्म का मरहम नहीं है

किनारा दूसरा दरिया का जैसे
वो साथी है, मगर मेहरम नहीं है
मैं तुम को चाह कर पछता रहा हूं
कोई इस ज़ख़्म का मरहम नहीं है

अमजद इस्लाम अमजद

No comments:

Post a Comment