अच्छा तुम्हारे शहर का द्स्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया
काग़ज़ में दब के मर गये कीड़े किताब के
दीवाना बे पढे लिखे मश्हूर हो गया
महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया
तनहाइयों ने तोड दी हम दोनों की अना (अहम)
आईना बात करने पे मजबूर हो गया
कुछ फल ज़रूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन मेरा मतालबा (मांग) मंज़ूर हो गया
बशीर बद्र
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