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Friday, October 17, 2008

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहां होगा
परिन्दा आस्मां छूने में जब नाकाम हो जाये

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी ज़ियादा सफ़ाई न दे
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
कि रहे सामने और दिखाई ना दे

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