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Friday, October 17, 2008

सच बोल के हर शहर में ऐसे ही रहोगे

दिल्ली हो कि लाहौर कोई फ़र्क़ नहीं है
सच बोल के हर शहर में ऐसे ही रहोगे

मैं चुप रहा तो और ग़लतफ़हमियां बढीं
वो भी सुना है उसने जो मैने कहा नहीं

दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जायेंगे

तुम अभी शहर में क्या नये आये हो
रुक गये राह में हादसा देख कर

ज़िन्दगी एक फ़क़ीर की चादर
जब ढके पांव हमने सर निकला

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