दिल्ली हो कि लाहौर कोई फ़र्क़ नहीं है
सच बोल के हर शहर में ऐसे ही रहोगे
मैं चुप रहा तो और ग़लतफ़हमियां बढीं
वो भी सुना है उसने जो मैने कहा नहीं
दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जायेंगे
तुम अभी शहर में क्या नये आये हो
रुक गये राह में हादसा देख कर
ज़िन्दगी एक फ़क़ीर की चादर
जब ढके पांव हमने सर निकला
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