अगर मैं लौटना चाहूं तो क्या मैं लौट सकता हूं
वो दुनिया साथ जो मेरे चली थी अब कहां होगी
सीने में आफ़्ताब सा इक दिल ज़रूर हो
हर घर में एक धूप का आंगन भी चाहिये
सूरज ख़ुद अपनी आग से सूरज है आज तक
इंसान के मिज़ाज में उलझन भी चाहिये
बच्चों के साथ झाडियों में जुगनू ढूंढिये
दिल के मुआमलात में बचपन भी चाहिये
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