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Saturday, October 18, 2008

इंकार करने वाले गुनहगार हो गये

हम पहले नर्म पत्तों की इक शाख़ थे मगर
काटे गये हैं इतने के तलवार हो गये
ताज़ा लहू भरा था सुनहरे गुलाब में
इंकार करने वाले गुनहगार हो गये

फिर उसके बाद अभी तक मुझे ज़मीं न मिली
ज़रा सी उम्र थी जब तन्हा पहली बार उड़ा

ये आख़री चराग़ उसी को बुझाने दो
इस बस्ती में वो सब से ज़ियादा हसीन है
तकिये के नीचे रखता है तस्वीर की किताब
तहरीरो गुफ़्तगू में जो इतना मतीन है

मतीन = सुसंस्कृत

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