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Wednesday, January 11, 2012

जब वो मेरे क़रीब से हंस कर गुज़र गये

जब वो मेरे क़रीब से हंस कर गुज़र गये
कुछ ख़ास दोस्तों के भी चेहरे उतर गये

jab voh mere qareeb se hans kar guzar gaye
kuchh Khaas dosto.n ke bhee chehre utar gaye

As he/she smiled at me and went past
Even my fiercest friends looked downcast

मुशीर झंझानवी

ये हरिहरन साहब की गाई एक बेहद मशहूर ग़ज़ल है. इसके दीगर अशआर भी मुझे काफ़ी पसन्द हैं. आप चाहें तो उनका भी लुत्फ़ ले सकते हैं.


अफ़सोस डूबने की तमन्ना ही रह गई
तूफ़ान ज़िन्दगी में जो आये गुज़र गये

हालांकि उनको देख कर पलटी ही थी नज़र
महसूस ये हुआ कि ज़माने गुज़र गये

कोई हमें बताए कि हम क्या जवाब दें
मंज़िल ये पूछती है कि साथी किधर गए

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