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Tuesday, March 15, 2011

इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का

इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का
ज़िन्दगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का

ज़िन्दगी भी तो पशेमान है यहां लाके मुझे
ढूंढती है कोई हीला (plot, stratagem) मेरे मर जाने का

हर नफ़स उम्रे गुज़िश्ता की है मैय्यत फ़ानी
ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिये जाने का

फ़ानी बदायूनी

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