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Tuesday, April 13, 2010

तेरी मसरूफ़ियतें जानते थे

तेरी मसरूफ़ियतें जानते थे
अपने आने की ख़बर क्या करते

वो मुसाफ़िर ही ख़ुली धूप का था
साये फैला के शजर क्या करते

परवीन शाकिर

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