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Wednesday, October 14, 2009

अब मुनासिब है यही कुछ मैं बढूं कुछ तुम बढो

बाद मुद्दत के गले मिलते हुए रुकता है दिल
अब मुनासिब है यही कुछ मैं बढूं कुछ तुम बढो

ज़ौक़

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