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Friday, July 10, 2009

मंज़िल के लिये दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाये

ऎ जज़्ब ए दिल गर मैं चाहूं हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाये

मंज़िल के लिये दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाये

बहज़ाद लखनवी

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