दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
जो भी गुज़रा है उसने लूटा है
अगर तलाश करूं कोई मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझको चाहेगा
न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा
मैं अपनी राह में दीवार बनके बैठा हूं
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
बशीर बद्र
No comments:
Post a Comment