My favourite poetry
Urdu, Hindi, Sanskrit, English, Greek and Latin - all the poetry that has touched me.
© V. Ravi Kumar. All rights reserved.
Thursday, October 9, 2008
जिस दिन से चला हूं मेरी मंज़िल पे नज़र है
बे वक़्त अगर जाऊंगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
जिस दिन से चला हूं मेरी मंज़िल पे नज़र है
आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूं उसने मुझे छूकर नहीं देखा
बशीर बद्र्
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