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Thursday, October 30, 2008

हम हक़ीक़त हैं नज़र आते हैं

हम हक़ीक़त हैं नज़र आते हैं
दास्तानों में छुपा लो हमको

जब भी कसने लगा उतार दिया
उस बदन पर कई लिबास रहे

आज हम सबके साथ ख़ूब हंसे
और फिर देर तक उदास रहे

हम राह चलो मेरे या राह से हट जाओ
दीवार के रोके से दरया कहीं रुकता है

इन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
मुझे रोक रोक पूछा तिरा हमसफ़र कहाँ है

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