इस जहां से कब कोई बचकर गया
जो भी आया खाके कुछ पत्थर गया
थी यही कोशिश मेरी पगड़ी ना जाये
बस इसी कोशिश में मेरा सर गया
दोस्तों का ख़ौफ़ ही काफ़ी है अब
मेरे दिल से दुश्मनों का डर गया
हम भी आख़िर सब के जैसे हो गये
रफ़्ता रफ़्ता अपना वो तेवर गया
बेच डाला हमने कल अपना ज़मीर
ज़िन्दगी का आख़री ज़ेवर गया
राजेश रेड़्डी
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